Friday, November 12, 2010

महफ़िल

पिछले कुछ दिनों में चंद ग़ज़लों से नज़रें चार हुईंबेहतरीन लेखकों की इन रचनाओं को पढ़कर केवल शांति मिली बल्कि चंद अशआर यहाँ शामिल करने को जी हो आया

वह तो जान लेके भी वैसा ही सुबुक-नाम रहा,
इश्क के बाब में सब जुर्म हमारे निकले । -- परवीन शाकिर

किवाड़ अपने इसी डर से खोलते ही नहीं,
सिवा हवा के उन्हें कौन खटखटाएगा। -- मंज़ूर हाश्मी

हमें भी पड़ा है दोस्तों से कुछ काम यानी,
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक़्त आया। -- पं हरिचंद 'अख्तर'

वो खिज़ां से है आज शर्मिन्दा,
जिसने रुस्वा किया बहारों को। -- सरदार अंजुम

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Thursday, November 11, 2010

खामोश पुर्जा

मेरी कोशिश है कि मैं बदलूँ
रेत घुले पानी की तरह ठहरूं
और निथर जाऊं
आज की धुंधली बयार को छोडूँ
और निखर जाऊं ।
मैं एक घाट का पानी
जाने कितने टीलों और
खेतों की मिट्टी से गुज़रकर
बह रहा हूँ
या बहने की कोशिश कर रहा हूँ,
नहीं जानता।
कितना धुआं एवं धसक लिए
ये हवा चल रही है
और मुझमें घुल रही है ।
रेत भाँति बैठा तो झोंका आया
हालात वही,
कुआँ फांद गया पर आगे
गहरी अँधियारी खाई ।
यह अकारण नहीं होता
इन् सबका सरोकार है मुझसे,
क्योंकि मैं समाज का
एक खामोश पुर्जा हूँ,
और ये हवा भी सामाजिक है ।
पर अब मैं बदलूँगा, निथरूंगा,
याद आया मैं तो पानी हूँ ।
समझो तो मैं अमृत,
वरना गरल भी हूँ।
देखो तो रास्ते जैसा टेढ़ा हूँ,
मानो तो सरल भी हूँ।

Monday, October 18, 2010

क़तील शिफ़ाई

पिछले कुछ दिनों में औरंगजेब खां क़तील शिफ़ाई साहब की कुछ ग़ज़लें पढने को मिली पढ़ते हुए
ख्याल बस उनकी ग़ज़लों में ही रहा और खुद को ये ग़ज़ल यहाँ शामिल करने से रोक नहीं पाया
क़तील साहब के गीत हों या ग़ज़लें, रूमानियत उनका एक अहम् हिस्सा रही है यह रूमानी अंदाज़ ज़मीन से जुड़ा हुआ है इसीलिए उनके लिखे हुए अलफ़ाज़ हमें अपने आस-पास नज़र आते हैं इसी रूमानियत की एक बानगी:

सावन के सुहाने मौसम में एक नार मिली बादल जैसी
बे-पंख उड़ानें लेती है, जो अपने ही आँचल जैसी

लाया है बनाकर उसको दुल्हन, ये जोबन, ये अलबेलापन,
इस उम्र में सर से पाँव तक लगती है ताजमहल जैसी

चेहरे पे सजे आईने हैं, या दो बेदाग़ नगीने हैं,
किस झील से आई हैं धुलकर ये आँखें नीलकमल जैसी

जो उसे देखे वह खो जाए, खो जाए तो शायर हो जाए,
उसका अंदाज़ है गीतों-सा, उसकी आवाज़ ग़ज़ल जैसी

वह ऐसे 'क़तील' अब याद आये, सपना जैसे कोई दुहराए,
मैं आज भी उसको चाहता हूँ, पर बात कहाँ वह कल जैसी

Monday, September 20, 2010

इब्तिदा



एक लड़की से मुहब्बत इतनी ज्यादा है।
अब सारे ज़माने से बगावत का इरादा है।

नाज़ुक कली है , फूलों से भी छुप के रहे,
आजकल वहाँ काँटों की तादाद ज्यादा है।

अब हसरतें भी बेहिसाब हो चली हैं,
प्यार भी हद से गुजरने पर आमादा है।

जान निकलती है नज़र के एक-एक वार पे,
यकीं कोई करे तो कैसे, तरीका ही इतना सादा है।

रूहानी रिश्ते पर कोई रश्क करे तो करे 'रोबिन',
उनसे मुलाक़ात अब नए आसमान की इब्तिदा है।
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कुछ दोस्तों की कलम से

हर मुलाक़ात पर वक़्त का तकाजा हुआ।
हर याद पे दिल का दर्द ताज़ा हुआ।
सुनी थी सिर्फ ग़ज़लों में जुदाई की बातें,
अब खुद पे बीती तो हकीक़त का अंदाजा हुआ।

ठुकरा कर उसने मुझे मुस्कुराने को कहा,
मैं हँस दिया सवाल उसकी ख़ुशी का था।
मैंने वो खोया जो कभी मेरा ना था,
लेकिन उसने वो खोया जो सिर्फ उसी का था।

ख़ुशी उन्हें नहीं मिलती जो जिंदगी को अपनी शर्तों पे जीते हैं ।
ये तो ग़ुलाम है,जो दूसरों की ख़ुशी के लिए अपनी जिंदगी के मायने बदल देते हैं।।

Thursday, September 16, 2010

मैंने देखा, तूने देखा?

अँधेरे में पसरती हैवानियत को किसने देखा
अपनों के हाथों लुटती अस्मत को किसने देखा

पाल नहीं सकते तो औलादें करने की क्या जरूरत,
कल कूड़ेदान में पड़ी मासूमियत को सबने देखा

मुफलिसी का सबब देकर गुनाह ठीक नहीं,
एक गिलहरी को पाते अज़मत आदम ने देखा

सेंकती थी नरम रोटियाँ, चूल्हे पे वो मुस्कुराके,
तवे से टकराती उन उँगलियों की अज़ियत को हमने देखा

औरत होकर औरत पे सितम तो बेईमानी हुई,
दहेज़ की लपट में सिसकती इंसानियत को तूने देखा?

वो माँ है, बेटी भी, दोस्त भी, बहन भी और संगिनी भी,
समझे वोही 'रोबिन', घर में खनकती इस कुदरत को जिसने देखा


Monday, September 13, 2010

प्रकृति


प्रकृति की विरह वेदना,
मानव कब समझ पाया है।
स्व-चेतना के मदांध में,
अल्प-ज्ञान को विराट जोहकर
केवल स्वार्थ पूर्ति हेतु
प्रकृति को नष्ट-भ्रष्ट किया है।
परिवर्तन को दैवीय कोप मानकर
एक कल्पित जगत में
सदैव मानव जिया है।
मूल्य समझने होंगे
विश्वास पाना होगा
फ़िर से
प्रकृति का
क्यूँकि प्रकृति माँ है
और माँ अधिक काल तक कुपित ऩही रहती !!

Saturday, September 11, 2010

एक ख्वाब चले

चल सके तो एक ख्वाब चले
खुदा करे आसपास शबाब चले

तेरी आँखों का तिलिस्म ठहरे,
फिर कहाँ कोई रुआब चले

तुम कभी सीधा सवाल पूछो,
तब तो कोई जवाब चले

मैखाने की फितरत भी अजब,
शराबी गिरे पर शराब चले

जहाँ भी हो अब चले आओ कि,
थमी धडकनों का हिसाब चले

बेशक निगाह दरिया ना हो,
दर्द उठे तो सैलाब चले

सच से पर्दा क्या उठा 'रोबिन',
महफ़िल से खुसूसी जनाब चले

Sunday, April 18, 2010

ऐतबार क्यूँ नहीं

दिल में कुछ है तो इकरार क्यूँ नहीं
नफरत है गर इतनी तो प्यार क्यूँ नहीं

नाज़ुक हथेली का निशाँ दायें रुखसार पे,
पर एक बार क्यूँ , बार-बार क्यूँ नहीं

तेरी उल्फत का तरीका भी अज़ब है,
यादें दी गालियाँ भी, फिर दीदार क्यूँ नहीं

मुझे अखबार कर दिया तूने बिना कुछ जाने,
दीवाना कहा पर कहा अपना बीमार क्यूँ नहीं

नामालूम किस स्याही से इश्क लिखा तेरे दिल पे,
तुझे जहाँ पे यकीन है, मुझपे ऐतबार क्यूँ नहीं


Tuesday, April 6, 2010

I was made for U

I stand tall here for the
world to see.
they wonder how perfect
someone's life could be.
they see the laughs,
and d wins.
how easy in ma favour
d wheel spins.
But when I m blue, even i don't
know d reason why
you come around to keep
me from a cry
sumtimes i might not see u
when i m in gold
but when m low, there's never a time
when i don't feel your hold.
Sweety no one knows me
d way u do.
I was made for U
I was made for U.

--- pal

Set Me Free

every day i wake up thinking about u by my side.
bcoz thats how i know i can own the world, got no reasons to hide.

when i want to fly u give me your wings,
when i feel, i had a crash u tell me those things.

u every time get me to rebuild with my worn out tools.
tell me, those who don't get me, are themselves fools.

u make me soar to the sun & look down at the tree,
I m blessed bcoz i know, ma luv u set me free !!
--- Pal

Tuesday, March 30, 2010

sweet like brandy shot

As i pass by d moving trees,
and a line of sleepy lights that follows me,
beneath sleeps a lake with a dried soul,
and
a lonely flag on that little crooked pole.

I see the tall tower wid a red beam which
never reaches but points d heaven.

and i feel so blessed that ma life's so fine,
ma light aint sleepy oh yeah it kissed with shine.
ma flag post isn't crooked, ma soul's not dry.

because u make ma life so lovablely sweet.
like sugar coated cookies with a brandy shot so neat !!
--- Pal



Like the

Miss u
like d darkness miss the light,
like d clouds miss the rain,
like d bee miss the nectar,
miss u like all these
as crazily as could be.
I miss u
--- pal

I remember you

i remember you
each time when these raindrops
fall on ma head.
each time the moon shows me d way.
when the wind make me close ma eyes,
when the smell of the wet earth
fills up ma sense,
I remember you

when i see the brightest star
& a couple hand in hand.
when i save ma drape from flying,
I remember you
---- pal

Friday, February 5, 2010

possible नहीं अपना मेल प्रिये !


(bitsian-life को समर्पित)
तू fash-p की पद्मालक्ष्मी है
मैं Dosa का भोला-भाला उल्लू हूँ
तू ठहरी चौमों की ऐश्वर्या,
मैं बिना नहाया मल्लू हूँ
तू lo'real का शेम्पू, मैं शांति आंवला तेल प्रिये
possible नहीं अपना मेल प्रिये !

तू 10p की सुन्दर notebook सी,
मैं एक बार class गयी कॉपी हूँ
तू डांस क्लब का प्यारा hat सनम,
मैं assoc-nite में पहनी गई टोपी हूँ
तू domino's का पिज्जा, मैं ANC की भेल प्रिये
possible नहीं अपना मेल प्रिये !

तू शर्माजी के गुलाब-जामुन जैसी,
मैं मिर्ची चाट रेहड़ी वाली हूँ
तू ढाबे के cheese-tomato सी,
मैं KG mess की दाल काली हूँ
तू course की CT सी, मैं D धकेल प्रिये
possible नहीं अपना मेल प्रिये !

तू final compre के paper जैसी,
मैं रोज़ दुत्कारी हुई tut की शीट हूँ
तू OASIS के Inaug जैसी,
मैं कृष्ण मार्ग के कबूतरों की बीट हूँ
तू bluemoon की coffee सी, मैं grub की ठेलम-ठेल प्रिये
possible नहीं अपना मेल प्रिये !

तू music night सी रंगीन है,
मैं test वाली रात सनम
तू job-treat सी मीठी-प्यारी,
मैं b'day वाली लात सनम
तू prof-show की mess sitting सी, मैं T-shirts की सेल प्रिये
possible नहीं अपना मेल प्रिये !




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save tiger

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save animals

save animals