Tuesday, December 6, 2011

ख्वाहिश-ए-नाकाम


टूटा जो आके लब पे, तेरा नाम ही तो है।
दिल में बस एक ख्वाहिश-ए-नाकाम ही तो है ।

पहला कदम ही आखिरी है उठ सके अगर,
मंजिल यकीं-ए-इश्क की गाम ही तो है।

रहने दो वापसी के लिए रास्ता खुला,
वो बद नहीं है, ज़रा बदनाम ही तो है।

साबित करेगा क्या कोई मुझ पर जफ़ा का जुर्म,
एक रोज़ धुल ही जाएगा, इल्ज़ाम ही तो है।

Saturday, August 20, 2011

ये इश्क

ये इश्क भी अजब है साहिब,
हर कोई यहाँ गुलाम इसका।
जग में ऊँच-नीच भले हो पर,
ना ख़ास, ना कोई आम इसका।

असर भी वो और भरम भी,
गिला भी उससे , महरम भी।
ये कशमकश इसकी ताकत है,
नया इजहार कलाम इसका।

हमसे पहले भी सबने किया,
हमारे बाद भी हर कोई करेगा।
मैं और तू तो बस धूल भर ,
सबसे बड़ा तो मकाम इसका।

ए इश्क ये ग़ज़ल की सदा तेरे लिए,
बरस हम पर भी कभी हुस्न में लिपटकर।
ओटक में खड़े हो इंतज़ार करते हैं,
जाने कब खाली हो हमाम इसका।


Monday, August 8, 2011

कुछ पंक्तियाँ तेरे लिए

होठों में तुम्हारे गुलाब हों ।
निगाहों में तेरा शबाब हो ।
कुछ हो न हो भले शाम में,
बस तेरे हुस्न की शराब हो !!

तेरी आँखें हैं कि सागर गहरा ।
मेरे दिल पे तेरा कब से पहरा ।
तमन्ना न दौलत की न ख्वाबों की,
बस फुर्सत हो और हो तेरा चेहरा।

राज कितने हों गहरे, तेरी आँखों से तो उथले हैं।
आज नाम लेकर पुकारा तूने तो अरमान मचले हैं।
सुना है शाम ढले तुम खिड़की पर आयीं थी,
सुबह से थे, बस अभी-२ तेरी गली से निकले हैं।

चाशनी से ज्यादा तो तेरी कशिश मीठी है।
ना जाने किस बात पे तू हमसे रूठी है।
मेरी ख्वाहिश तो तुझे रोज़ देखने भर की थी,
तुझे छीन लेंगे ये रकीब की अफवाह झूठी है।




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