पिछले कुछ दिनों में चंद ग़ज़लों से नज़रें चार हुईं। बेहतरीन लेखकों की इन रचनाओं को पढ़कर न केवल शांति मिली बल्कि चंद अशआर यहाँ शामिल करने को जी हो आया।
वह तो जान लेके भी वैसा ही सुबुक-नाम रहा,
इश्क के बाब में सब जुर्म हमारे निकले । -- परवीन शाकिर
किवाड़ अपने इसी डर से खोलते ही नहीं,
सिवा हवा के उन्हें कौन खटखटाएगा। -- मंज़ूर हाश्मी
हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से कुछ काम यानी,
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक़्त आया। -- पं हरिचंद 'अख्तर'
वो खिज़ां से है आज शर्मिन्दा,
जिसने रुस्वा किया बहारों को। -- सरदार अंजुम
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वह तो जान लेके भी वैसा ही सुबुक-नाम रहा,
इश्क के बाब में सब जुर्म हमारे निकले । -- परवीन शाकिर
किवाड़ अपने इसी डर से खोलते ही नहीं,
सिवा हवा के उन्हें कौन खटखटाएगा। -- मंज़ूर हाश्मी
हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से कुछ काम यानी,
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक़्त आया। -- पं हरिचंद 'अख्तर'
वो खिज़ां से है आज शर्मिन्दा,
जिसने रुस्वा किया बहारों को। -- सरदार अंजुम
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बढ़िया प्रस्तुति के साधुवाद .
ReplyDeleteग्राम-चौपाल - कम्प्यूटर में हाईटेक पटाखे