Friday, November 12, 2010

महफ़िल

पिछले कुछ दिनों में चंद ग़ज़लों से नज़रें चार हुईंबेहतरीन लेखकों की इन रचनाओं को पढ़कर केवल शांति मिली बल्कि चंद अशआर यहाँ शामिल करने को जी हो आया

वह तो जान लेके भी वैसा ही सुबुक-नाम रहा,
इश्क के बाब में सब जुर्म हमारे निकले । -- परवीन शाकिर

किवाड़ अपने इसी डर से खोलते ही नहीं,
सिवा हवा के उन्हें कौन खटखटाएगा। -- मंज़ूर हाश्मी

हमें भी पड़ा है दोस्तों से कुछ काम यानी,
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक़्त आया। -- पं हरिचंद 'अख्तर'

वो खिज़ां से है आज शर्मिन्दा,
जिसने रुस्वा किया बहारों को। -- सरदार अंजुम

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1 comment:

  1. बढ़िया प्रस्तुति के साधुवाद .

    ग्राम-चौपाल - कम्प्यूटर में हाईटेक पटाखे

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