Thursday, October 1, 2009

तेरा हो रहा हूँ


बाहों का आसरा लेकर जवां हो रहा हूँ
लबों के लिपट जाने से धुआं हो रहा हूँ

कहते हैं मेरा नजरिया बदल सा गया है,
नया हो रहा हूँ लेकिन कहाँ हो रहा हूँ

किसी के आने से खुशनुमा हो चला है मौसम,
कभी मेह कभी धुंध तो कभी फिज़ां हो रहा हूँ

मेरे पोर-पोर में महकता है तेरा अहसास,
मुझमें कहाँ नहीं है तू, सोचकर हैरां हो रहा हूँ




बदस्तूर
तेरा ख्याल मेरी नींद पर काबिज़ है,
जगा हूँ पर लगता है तेरी गोद में सो रहा हूँ

रात यूँ ना कर ज़रा थम-थम के चल,
बाद अरसा किसी आगोश का मेहमां हो रहा हूँ

जेब में रखा संदेसा झाँक के गुनगुनाता है,
वो आती होगी, मैं नाहक परेशां हो रहा हूँ

यकीन मानिए क़त्ल हुआ हूँ उसकी आंखों से,
कैसे कहूं कि क्या हुआ, बस बेजुबाँ हो रहा हूँ

रही है खनकती श्यामल दुपट्टा गिराए,
बेकरार दोनों हैं वो वहाँ, मैं यहाँ हो रहा हूँ

बस दस्तखत यही कि वो नहीं तो हम भी नहीं,
समझिये उसका लिखा ख़त हूँ, ख़ुद बयां हो रहा हूँ



कुछ विचार

ना समेट अपनी जुल्फें इनको खुला रहने दे।
बाहर गर्मी बहुत है, घटा का अहसास रहने दे।

काश दिल की आवाज़ में ऐसा असर हो जाए।
हम जिसे याद करते हैं उसको ख़बर हो जाए।
- मित्र की कलम से

मजाज़

आप खुश हुए तो ख़ुद पे भी नाज़ आया।
ज़िन्दगी और हसीनतर जीने का अंदाज़ आया।

दर्द हद से फिर बढ़ा उसके पास ना होने से ,
लगा जैसे 'रोबिन' में उतर कहीं से 'मजाज़' आया।
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