Tuesday, June 23, 2009

राधा

राधा ख़ुद खनकती है, कन्हैया की बांसुरी पर !
भव-पालनहार भी फ़िदा है, प्रेम की माधुरी पर !!

प्रेम सतत, प्रेम अनंत, प्रेम लगन, प्रेम भजन !
और प्रेम वजन है, ठाकुर की ठाकुरी पर !!

प्रेम-पगी उनींदी राधा रात न देखे और न दिन,
क्या कदम्ब, स्वयं देव भी रहे चाकरी पर !!

कृष्ण की बने न बने, परवाह किसे इस पर्व में !
प्रेम-रण में भले हारी वो, है रण-बांकुरी पर !!

विरह की पीड़ा ज़ज्ब है 'रोबिन', राधा के अनुराग में !
कामना यही सामने माधव रहें, साँस आखरी पर !!

Monday, June 22, 2009

लिखता हूँ तुझे

सच है कि मैं किस्से लिखता हूँ।
दिलों के बिखरे हुए हिस्से लिखता हूँ।

मुजस्समा हूँ, बँधे हुए हाथ लिए ,
इतिहास फ़िर न जाने किससे लिखता हूँ।

ठूंठ बचे हैं पुरानी फसलों के यहाँ,
अश्कों से सींचे कुछ बिस्से लिखता हूँ।

तू ही मेरा है, तू ही बेगाना है ,
ग़म अपने, खुशी तेरे हिस्से लिखता हूँ।

टकराती हैं तेरी यादें, दिल के झीने से ,
यही वो स्याही, जिंदगी जिससे लिखता हूँ।

रो लिया जो जुदाई में, मिटा दिया सब ,
खुश हुआ हूँ तो तुझे फिरसे लिखता हूँ ।
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