Sunday, April 18, 2010

ऐतबार क्यूँ नहीं

दिल में कुछ है तो इकरार क्यूँ नहीं
नफरत है गर इतनी तो प्यार क्यूँ नहीं

नाज़ुक हथेली का निशाँ दायें रुखसार पे,
पर एक बार क्यूँ , बार-बार क्यूँ नहीं

तेरी उल्फत का तरीका भी अज़ब है,
यादें दी गालियाँ भी, फिर दीदार क्यूँ नहीं

मुझे अखबार कर दिया तूने बिना कुछ जाने,
दीवाना कहा पर कहा अपना बीमार क्यूँ नहीं

नामालूम किस स्याही से इश्क लिखा तेरे दिल पे,
तुझे जहाँ पे यकीन है, मुझपे ऐतबार क्यूँ नहीं


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