दिल में कुछ है तो इकरार क्यूँ नहीं।
नफरत है गर इतनी तो प्यार क्यूँ नहीं।
नाज़ुक हथेली का निशाँ दायें रुखसार पे,
पर एक बार क्यूँ , बार-बार क्यूँ नहीं।
तेरी उल्फत का तरीका भी अज़ब है,
यादें दी गालियाँ भी, फिर दीदार क्यूँ नहीं।
मुझे अखबार कर दिया तूने बिना कुछ जाने,
दीवाना कहा पर कहा अपना बीमार क्यूँ नहीं।
नामालूम किस स्याही से इश्क लिखा तेरे दिल पे,
तुझे जहाँ पे यकीन है, मुझपे ऐतबार क्यूँ नहीं।
beautiful words.....
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