Wednesday, September 16, 2009

बोसा


बरसों की आवारगी ने कुछ यूँ असर किया।
किसी पे मर के ख़ुद को अब बेहतर किया।

फुरसतें पहले भी थी, अब तब्दील ये
रात कुरबां की, दिन तुझे नज़र किया।

दुनिया से अनजान तो हम हमेशा से थे,
अब आलम ये ख़ुद को ख़ुद से बेखबर किया।

वादा था कि शब् में नसीब होगा एक बोसा,
पर उन लबों का इंतज़ार हमने रातभर किया।

बज्म में अकेला होना आज जाना,
हर बार जब तुझसे फासले पर सफर किया।

अब दिल तेरा, धड़कन तू और जिंदगी तुझसे,
मर
जायेंगे तूने वस्ल से इनकार अगर किया।
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