Saturday, December 12, 2009

इंतज़ार का महकमा

तेरी यादों का सिलसिला थमा कब
इस बेरहम बाज़ार में मैं जमा कब

तू था तो कुछ ख़ुशमिज़ाजी थी,
तू नहीं तब भी है मुझे सदमा कब

दुनिया की चकाचौंध से सब सराबोर,
खैर मुझे भाया ही था ये मजमा कब

अपनाया भी 'औ' ठुकराया भी तूने ही,
बस ये बता दे चला ये मुकदमा कब

इश्क की गलियाँ अब देख-भाल ली मैंने भी,
देखना है मैं देता हूँ किसी को चकमा कब

उसके फ़िराक में रोज़ नुक्कड़ पर चाय चलती है 'रोबिन',
नामालूम करेंगे बंद ये इंतज़ार का महकमा कब


Thursday, December 10, 2009

जाम सी वो



साँझ में फलक से उतरते शबाब सी वो।
पैमाने के कोर से छलकती शराब सी वो।

अब तक सोचते रहे भई क्या है ज़िंदगी,
पहाड़ से इस सवाल का मुकम्मल जवाब सी वो।

शहज़ादी कहो या ग़ज़ल तब भी क्या तारीफ़ हुई,
पढो तो बस खिलखिला उठो ऐसी किताब सी वो


धड़कनों को नशा सा चढ़ने लगता है झलक भर पे,
ठहरे बुलबुले सी नाज़ुक, मासूम आदाब सी वो।

जो हम कभी थे अब हम वो ना रहे 'रोबिन',
जब से जर्रे-२ में समा गई इंकलाब सी वो।



उसकी छम-छम

चुपचाप रात का धीमा शोर सुना मैंने।
शोर के तागों से उसको बुना मैंने।

इठलाती सी बुनावट उधेड़ गगन पहुँची,
ये बांकपन भी कमाल का चुना मैंने।

पायल के तरानों से उसकी बँधा मैं,
ये अपहरण आज ही समझा औ गुना मैंने।

ख़ुद को भले एक पल भी न दिया हो अच्छे से,
उसके लिए कर दिया अपना वक्त दुगुना मैंने।


पिछले माघ जाना उसे ठण्ड ज्यादा लगती है,
इस फागुन तक रखा है पानी गुनगुना मैंने।

चौपाल पे सुना की प्रेम मुश्किल भरी राह है,
वो क्या मिली दुनिया को कर दिया अनसुना मैंने।

Tuesday, December 1, 2009

मजबूर इश्क

मेरा दिल तेरे इश्क में भले मजबूर सही।
दौलत के हाथों बिकना पर मुझे मंजूर नहीं।

ये दुनिया गर अपनों का ऐसे इम्तेहां लेती है,
नहीं चाहिए कोई, यहाँ से ले चल दूर कहीं।

तू हो और जरूरी असबाब हो जीने को,
फ़िर ना आसमां चाहिए 'रोबिन' ना जमीं।

मरने के बाद कुछ नसीब होता हो तो तू हो,
किस्मत चाहिए जन्नत की दिलकशीं।



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