Monday, September 20, 2010

इब्तिदा



एक लड़की से मुहब्बत इतनी ज्यादा है।
अब सारे ज़माने से बगावत का इरादा है।

नाज़ुक कली है , फूलों से भी छुप के रहे,
आजकल वहाँ काँटों की तादाद ज्यादा है।

अब हसरतें भी बेहिसाब हो चली हैं,
प्यार भी हद से गुजरने पर आमादा है।

जान निकलती है नज़र के एक-एक वार पे,
यकीं कोई करे तो कैसे, तरीका ही इतना सादा है।

रूहानी रिश्ते पर कोई रश्क करे तो करे 'रोबिन',
उनसे मुलाक़ात अब नए आसमान की इब्तिदा है।
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कुछ दोस्तों की कलम से

हर मुलाक़ात पर वक़्त का तकाजा हुआ।
हर याद पे दिल का दर्द ताज़ा हुआ।
सुनी थी सिर्फ ग़ज़लों में जुदाई की बातें,
अब खुद पे बीती तो हकीक़त का अंदाजा हुआ।

ठुकरा कर उसने मुझे मुस्कुराने को कहा,
मैं हँस दिया सवाल उसकी ख़ुशी का था।
मैंने वो खोया जो कभी मेरा ना था,
लेकिन उसने वो खोया जो सिर्फ उसी का था।

ख़ुशी उन्हें नहीं मिलती जो जिंदगी को अपनी शर्तों पे जीते हैं ।
ये तो ग़ुलाम है,जो दूसरों की ख़ुशी के लिए अपनी जिंदगी के मायने बदल देते हैं।।

Thursday, September 16, 2010

मैंने देखा, तूने देखा?

अँधेरे में पसरती हैवानियत को किसने देखा
अपनों के हाथों लुटती अस्मत को किसने देखा

पाल नहीं सकते तो औलादें करने की क्या जरूरत,
कल कूड़ेदान में पड़ी मासूमियत को सबने देखा

मुफलिसी का सबब देकर गुनाह ठीक नहीं,
एक गिलहरी को पाते अज़मत आदम ने देखा

सेंकती थी नरम रोटियाँ, चूल्हे पे वो मुस्कुराके,
तवे से टकराती उन उँगलियों की अज़ियत को हमने देखा

औरत होकर औरत पे सितम तो बेईमानी हुई,
दहेज़ की लपट में सिसकती इंसानियत को तूने देखा?

वो माँ है, बेटी भी, दोस्त भी, बहन भी और संगिनी भी,
समझे वोही 'रोबिन', घर में खनकती इस कुदरत को जिसने देखा


Monday, September 13, 2010

प्रकृति


प्रकृति की विरह वेदना,
मानव कब समझ पाया है।
स्व-चेतना के मदांध में,
अल्प-ज्ञान को विराट जोहकर
केवल स्वार्थ पूर्ति हेतु
प्रकृति को नष्ट-भ्रष्ट किया है।
परिवर्तन को दैवीय कोप मानकर
एक कल्पित जगत में
सदैव मानव जिया है।
मूल्य समझने होंगे
विश्वास पाना होगा
फ़िर से
प्रकृति का
क्यूँकि प्रकृति माँ है
और माँ अधिक काल तक कुपित ऩही रहती !!

Saturday, September 11, 2010

एक ख्वाब चले

चल सके तो एक ख्वाब चले
खुदा करे आसपास शबाब चले

तेरी आँखों का तिलिस्म ठहरे,
फिर कहाँ कोई रुआब चले

तुम कभी सीधा सवाल पूछो,
तब तो कोई जवाब चले

मैखाने की फितरत भी अजब,
शराबी गिरे पर शराब चले

जहाँ भी हो अब चले आओ कि,
थमी धडकनों का हिसाब चले

बेशक निगाह दरिया ना हो,
दर्द उठे तो सैलाब चले

सच से पर्दा क्या उठा 'रोबिन',
महफ़िल से खुसूसी जनाब चले

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