Friday, April 3, 2009

तेरी वजह से में प्यारा हूँ

किसे बाहों में ले जिंदगी
हतप्रभ है , हैरान है।
शिशु की मुस्कान सी मासूम भले
पर ख़ुद मृत्यू की मेहमान है।
अनजानी सी सुगंध लिए
झूमती है , गाती है।
सावन के हिंडोले पर हवा से
बतियाती है , इतराती है।
महबूबा हो जैसे , बावरी हो अपने ढोला की
साँसों की सरगम पे सूप से दिनों को झटकती
गाँव की गोरी जैसी अल्हड
गीतों से अपने आप को दुनिया को सुनाती
जिंदगी
समझ नही आता तुझे सलाम करूँ
या तरस जताऊं
नहीं जानता, केवल यही कहना है तुझसे
तेरी गोद में मैं बैठा हूँ
और तेरे साजन से मिलना नहीं चाहता मैं
अंश बने रहने की इच्छा है तेरे वजूद का
क्यूँकि तू खूबसूरत है, इसीलिए शायद
मैं भी थोड़ा सा प्यारा हूँ

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