Saturday, April 4, 2009

एक राकेश ऐसा भी

उसकी आँखें देखकर अब पीने को जी नहीं करता ।
वो दूर है इतनी, बगैर जालिम के जीने को जी नहीं करता !!

भले वो आती है मुझसे मिलने दो-चार घड़ी भर के लिए,
प्यास उतनी ही रहती, ये दरिया कभी नहीं भरता !!

पहरों इंतज़ार उसका और शब् में वो उतरती मुस्कुराती,
क्या है कि जो मेरे भीतर इतने सितम के बाद भी नहीं मरता !!

अब इसे इश्क कहूं कि दीवानापन या आशिकी नाम दूँ,
वो गर मेरे साथ है तो फ़िर मैं इस जहाँ से भी नहीं डरता !!

दो पल का साथ उसका एक जिन्दगी के बराबर मान राकेश,
उससे जुदा होने के ग़म के सामने अब कोई और दर्द नहीं ठहरता !!

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