Saturday, April 4, 2009

वो तीसरी नज़र की चाहत

मैं मैं और बस मैं....arrogant and a guy with attitude. मेरी पहचान, जब से मैंने इस महाविद्यालय में कदम रखा.
आज तलक पहचान वही, केवल थोडा सा अंतर आया है परिभाषित शब्दों में, arrogant समभ्व्तः नहीं रहा, किन्तु guy
with attitude अभी भी हूँ। 10+2 के उस इंसान में और bitsian बन्दे में ज़मीन-आसमान के मध्य जितनी दूरी हो चली है।
वो मासूम सा बच्चा आज मासूमियत की केंचुली कब की त्याग चुका है।

चलिए आते है इस प्रसंग के शीर्षक की और..
मेरे 5 वर्षों के bits-pilani कार्यकाल में वो एक ऐसे अध्याय की भाँति है, जिसके मिटा देने पर हो सकता है मैं स्वयम ही अपना
कार्यकाल याद न रख पाऊं। अब आप पूछेंगे की वो का कोई नाम या अता-पता तो होगा, है अच्छा खासा है परन्तु उसका ज़िक्र अगर
यहाँ केवल सूचक की तरह लिया जाए तो अधिक उपयुक्त होगा।
उसे सबसे पहले मैंने bits में एक जनरल मीटिंग के दौरान देखा था। तब शायद उसका सौन्दर्य संभवतः मुझे उतना असाधारण नहीं लगा।
वो एक आम लड़की की तरह थी। वही बाल सुलझाना, बारीकी से देखना, सोच के बोलना, हल्का सा make-up, साधारण से वस्त्र और
सादगी भरा चेहरा. कुछ बातें, वो भी औपचारिक| मीटिंग समाप्त और मेरी भंगिमा पुराने जैसी, अपने ठिकाने की तरफ कदम
बढाते हुए हम चले आये| कभी कभार ज़रा सी चर्चा हुई तो उनका नाम भी आया लेकिन कोई हलचल जैसी वस्तु वहाँ
नहीं हुई | दिन गुजरते गए..रात सवेरे में तब्दील होती रही..महीने साल से प्यार करने निकल पड़े |

अब आते है द्वितीय नज़र पर...... ये नज़र कई श्रृंखलाओं का समागम है अर्थात मात्र एक मुलाकात नहीं बल्कि
अनेक का संगम है | जैसे जैसे हम उनकी विभिन्न कलाओं से परिचित होते गए, वैसे वैसे हमारे मानस पटल पर
वो परत सी चढ़ती गयी | यकीनन अभी परत अत्यंत पतली रही होगी अन्यथा हम इतना समय व्यर्थ ना गवां देते | वो कलाकार,
चित्रकार, पहेलिकार और ना जाने किन किन रूपों में हमसे मुखातिब होती रही और सच मानिए अभी भी कमबख्त परत पूर्ववत रही |
क्यूँकि इंसान के रूप में सामना ही परत की मोटाई को नया आकार दे सकता था और हुआ भी यही......

तीसरी नज़र...
शुरुआत थी तृतीय वर्ष की | हम पर उत्तर दायित्व एक बेहतरीन शाम आयोजित करवाने का था तथा इस भारी भरकम
काम के लिए मुझे सभी सहयोगियों का साथ चाहिए था | हम जिस संगठन के मुखिया थे उस नाते ये हमारी जिम्मेदारी थी कि हम सबको
साथ लेकर एक अद्भुत शाम प्रस्तुत करें | वो उन सदस्यों में से थी जिनकी भागीदारी उनकी प्रतिभा के अनुरूप नहीं थी | अतः उन्हें संगठन के करीब
लाना और उससे एक सक्रिय सदस्य की भाँति कार्य करवाना , संभवतः ये दोनों रुचिकर साथ ही साथ दुष्कर कार्य, हमें उनके उन सभी
पहलुओं के नज़दीक ले आये जिनसे हम कदापि वाकिफ नहीं थे |
बस वो सभी मीटिंग्स एवं कार्यक्रम के दौरान की बातें, उनके प्रति एक लगाव उत्पन्न कर गयी |
वो लगाव कब पसंद, वो पसंद कब इच्छा तथा वो इच्छा कब प्रेम में बदली , पता ही नहीं चला |
प्रेम जैसी परिपाटी से हम आज भी अनभिज्ञ है और हम सभी के सामने ये दावा भी करते है कि हम प्रेम करना ही
नहीं चाहते, परन्तु ये सत्य है की वो मेरे इस जीवन पुस्तक में एक अनूठे अध्याय की तरह है | मैं इस अध्याय को अभी तक
पढ़ नहीं पाया हूँ.....समझना तो परे है !
मेरी तीसरी नज़र की चाहत आज तक केवल वाक्य ही है क्योंकि मैं उसे ये बताने का साहस नहीं कर पाया हूँ की वो मेरे लिए क्या है और उससे जो सीखा है वो किसी और पे लुटा पाया तो खुशनसीबी होगी ||

- एक अबूझ आशिक

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