I am an agent of chaos and a perplexed freak !!
लेकिन चंद लोग मेरे आस-पास ऐसे हैं जो मेरे लिए न केवल प्रेरणा हैं किन्तु उम्मीद की किरनें भी हैं !!
बस उन्हीं को समर्पित....
Monday, March 30, 2009
लम्हा-लम्हा थोड़ा सुरूर है। आपकी दीवानगी का ये कसूर है।
अच्छा था जब तन्हा था अकेला था, आहट से तेरी दिल मगरूर है।
तेरी दस्तक से होती है धड़कनें सुर्ख, कुछ तो है जो मुझे हुआ जरूर है।
a piece of heart !! ?? क्या सचमुच दिल के टुकड़े हज़ार हुए-ब्लॉगिंग पर स्वागत है हम भी दिलवाले हैं साहिब
आप दो में से एक राष्ट्रीय पार्टी को ही वोट दें और वोट डालना न भूलें
शासन और प्रशासन की जी हुजूरी करने वाले पत्रकारों के लिए तो उनका ख़ुद का फाउन्टेन पेन अपने कोख से स्याही निकालते घबराता होगा ।http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह http:/katha-kavita.blogspot.com दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा सस्नेह श्यामसखा‘श्याम
मेरी सांसों में यही दहशत समाई रहती है मज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा। यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा। जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पर ठहरे वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा। मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम काम कोई दूसरा इससे ज़हाँ में बदतर नहीं होगा। मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन यूँ ही चलते रहे तो सोचो, ज़रा अमन का क्या होगा। अहले-वतन शोलों के हाथों दामन न अपना दो दामन रेशमी है "दीपक" फिर दामन का क्या होगा। @कवि दीपक शर्मा http://www.kavideepaksharma.co.in (http://www.kavideepaksharma.co.in/) इस सन्देश को भारत के जन मानस तक पहुँचाने मे सहयोग दे.ताकि इस स्वस्थ समाज की नींव रखी जा सके और आवाम चुनाव मे सोच कर मतदान करे. काव्यधारा टीम
a piece of heart !! ??
ReplyDeleteक्या सचमुच दिल के टुकड़े हज़ार हुए-ब्लॉगिंग पर स्वागत है
हम भी दिलवाले हैं साहिब
आप दो में से एक राष्ट्रीय पार्टी को ही वोट दें और वोट डालना न भूलें
शासन और प्रशासन की जी हुजूरी करने वाले पत्रकारों के लिए तो उनका ख़ुद का फाउन्टेन पेन अपने कोख से स्याही निकालते घबराता होगा ।http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम
भाई खुदा के लिये वर्ड वेरिफ़िकेश्न हटाएं
ReplyDeleteयह टिपण्णी करने वालों को दूर भगाता है
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त कलम है भाई आपकी....एक बार पढ़ना शुरू किया तो आख़िर तक रुकते नही बना .....बहुत खूबसूरत...
ReplyDeleteब्लोगिंग जगत में स्वागत है
ReplyDeleteलगातार लिखते रहने के लिए शुभकामनाएं
कुछ तो है जो आपको हुआ ज़रूर है
आप डाक्टर को दिखाएं
मेरी सांसों में यही दहशत समाई रहती है
ReplyDeleteमज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा।
यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के
तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा।
जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पर ठहरे
वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम
काम कोई दूसरा इससे ज़हाँ में बदतर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन
यूँ ही चलते रहे तो सोचो, ज़रा अमन का क्या होगा।
अहले-वतन शोलों के हाथों दामन न अपना दो
दामन रेशमी है "दीपक" फिर दामन का क्या होगा।
@कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.co.in (http://www.kavideepaksharma.co.in/)
इस सन्देश को भारत के जन मानस तक पहुँचाने मे सहयोग दे.ताकि इस स्वस्थ समाज की नींव रखी जा सके और आवाम चुनाव मे सोच कर मतदान करे.
काव्यधारा टीम
सुन्दर अभिव्यक्ति.........शुभकामनाऎं
ReplyDeletebahut achha likha hai apne..aur ummid hai ki age bhi is se badhiya lekh likhte rahenge....bahut bahut subhkamnay...sankar-shah.blogspot.com
ReplyDeleteलम्हा-लम्हा थोड़ा सुरूर है।
ReplyDeleteआपकी दीवानगी का ये कसूर है।
क्या बात कही है.. बहुत खूब..