रीतिकाल के प्रेम भरे पद-छंद पढा रहे ,
थे गुरूजी B.A. की क्लास में |
राधा तन रंग भरे श्याम-नैनों में आकंठ ,
डूबी मगन रहे प्रेम-धुन रंग-रास में |
सुजान-प्रेमी घनानंद से ये पद अनूठे,
लिखते वही रम जो जाते प्रेम उजास में |
करके ख़त्म लेक्चर प्रसन्न गुरूजी निकले,
देखे एक छोरा-छोरी बैठे पास-पास में |
गुरूजी को देख अचम्भे में , छोरा बोला,
सर समझी नहीं ये कुछ क्लास में |
इसीलिए अब प्रेम भाव समझा रहा हूँ,
तसल्ली से बैठकर इस घास में ||
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