तेरी यादों का सिलसिला थमा कब।
इस बेरहम बाज़ार में मैं जमा कब।
तू था तो कुछ ख़ुशमिज़ाजी थी,
तू नहीं तब भी है मुझे सदमा कब।
दुनिया की चकाचौंध से सब सराबोर,
खैर मुझे भाया ही था ये मजमा कब।
अपनाया भी 'औ' ठुकराया भी तूने ही,
बस ये बता दे चला ये मुकदमा कब।
इश्क की गलियाँ अब देख-भाल ली मैंने भी,
देखना है मैं देता हूँ किसी को चकमा कब।
उसके फ़िराक में रोज़ नुक्कड़ पर चाय चलती है 'रोबिन',
नामालूम करेंगे बंद ये इंतज़ार का महकमा कब।
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