चुपचाप रात का धीमा शोर सुना मैंने।
शोर के तागों से उसको बुना मैंने।
इठलाती सी बुनावट उधेड़ गगन पहुँची,
ये बांकपन भी कमाल का चुना मैंने।
पायल के तरानों से उसकी बँधा मैं,
ये अपहरण आज ही समझा औ गुना मैंने।
ख़ुद को भले एक पल भी न दिया हो अच्छे से,
उसके लिए कर दिया अपना वक्त दुगुना मैंने।
पिछले माघ जाना उसे ठण्ड ज्यादा लगती है,
इस फागुन तक रखा है पानी गुनगुना मैंने।
चौपाल पे सुना की प्रेम मुश्किल भरी राह है,
वो क्या मिली दुनिया को कर दिया अनसुना मैंने।
शोर के तागों से उसको बुना मैंने।
इठलाती सी बुनावट उधेड़ गगन पहुँची,
ये बांकपन भी कमाल का चुना मैंने।
पायल के तरानों से उसकी बँधा मैं,
ये अपहरण आज ही समझा औ गुना मैंने।
ख़ुद को भले एक पल भी न दिया हो अच्छे से,
उसके लिए कर दिया अपना वक्त दुगुना मैंने।
पिछले माघ जाना उसे ठण्ड ज्यादा लगती है,
इस फागुन तक रखा है पानी गुनगुना मैंने।
चौपाल पे सुना की प्रेम मुश्किल भरी राह है,
वो क्या मिली दुनिया को कर दिया अनसुना मैंने।
पिछले माघ जाना उसे ठण्ड ज्यादा लगती है,
ReplyDeleteइस फागुन तक रखा है पानी गुनगुना मैंने।
-बेहतरीन भावाव्यक्ति!! शानदार.