Monday, August 24, 2009

नजाकत

उसकी आँखों में अपनी परछाई हो
फिर आईने की चाहत किसे

शाम
ढले गुलाबी आँचल की सोहबत हो
फिर सोने की फुरसत किसे




नहाई
जुल्फों से छिटकती बूँदें मेरे चेहरे पे
फिर बताइये कहें नजाकत किसे

सरे-राह 'रोबिन' इश्क करे अपने माही से
भले हो तो हो शिकायत किसे

वो जरीपोश शरीक हो जाए वजूद में मेरे
फिर जन्नत क्या और जरूरत किसे




5 comments:

  1. waah kya nazakat se likha hain aapne...mere khayal se aapka personal best!!

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  2. बहुत ही संछिप्त और पूर्ण..
    वैसे ये है किसके लिए :)

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  3. aap sabhi dosto aur kadradonon ka shukriya...

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