Monday, August 8, 2011

कुछ पंक्तियाँ तेरे लिए

होठों में तुम्हारे गुलाब हों ।
निगाहों में तेरा शबाब हो ।
कुछ हो न हो भले शाम में,
बस तेरे हुस्न की शराब हो !!

तेरी आँखें हैं कि सागर गहरा ।
मेरे दिल पे तेरा कब से पहरा ।
तमन्ना न दौलत की न ख्वाबों की,
बस फुर्सत हो और हो तेरा चेहरा।

राज कितने हों गहरे, तेरी आँखों से तो उथले हैं।
आज नाम लेकर पुकारा तूने तो अरमान मचले हैं।
सुना है शाम ढले तुम खिड़की पर आयीं थी,
सुबह से थे, बस अभी-२ तेरी गली से निकले हैं।

चाशनी से ज्यादा तो तेरी कशिश मीठी है।
ना जाने किस बात पे तू हमसे रूठी है।
मेरी ख्वाहिश तो तुझे रोज़ देखने भर की थी,
तुझे छीन लेंगे ये रकीब की अफवाह झूठी है।




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