ये इश्क भी अजब है साहिब,
हर कोई यहाँ गुलाम इसका।
जग में ऊँच-नीच भले हो पर,
ना ख़ास, ना कोई आम इसका।
असर भी वो और भरम भी,
गिला भी उससे , महरम भी।
ये कशमकश इसकी ताकत है,
नया इजहार कलाम इसका।
हमसे पहले भी सबने किया,
हमारे बाद भी हर कोई करेगा।
मैं और तू तो बस धूल भर ,
सबसे बड़ा तो मकाम इसका।
ए इश्क ये ग़ज़ल की सदा तेरे लिए,
बरस हम पर भी कभी हुस्न में लिपटकर।
ओटक में खड़े हो इंतज़ार करते हैं,
जाने कब खाली हो हमाम इसका।
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