राधा ख़ुद खनकती है, कन्हैया की बांसुरी पर !
भव-पालनहार भी फ़िदा है, प्रेम की माधुरी पर !!
प्रेम सतत, प्रेम अनंत, प्रेम लगन, प्रेम भजन !
और प्रेम वजन है, ठाकुर की ठाकुरी पर !!
प्रेम-पगी उनींदी राधा रात न देखे और न दिन,
क्या कदम्ब, स्वयं देव भी रहे चाकरी पर !!
कृष्ण की बने न बने, परवाह किसे इस पर्व में !
प्रेम-रण में भले हारी वो, है रण-बांकुरी पर !!
विरह की पीड़ा ज़ज्ब है 'रोबिन', राधा के अनुराग में !
कामना यही सामने माधव रहें, साँस आखरी पर !!
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