Monday, June 22, 2009

लिखता हूँ तुझे

सच है कि मैं किस्से लिखता हूँ।
दिलों के बिखरे हुए हिस्से लिखता हूँ।

मुजस्समा हूँ, बँधे हुए हाथ लिए ,
इतिहास फ़िर न जाने किससे लिखता हूँ।

ठूंठ बचे हैं पुरानी फसलों के यहाँ,
अश्कों से सींचे कुछ बिस्से लिखता हूँ।

तू ही मेरा है, तू ही बेगाना है ,
ग़म अपने, खुशी तेरे हिस्से लिखता हूँ।

टकराती हैं तेरी यादें, दिल के झीने से ,
यही वो स्याही, जिंदगी जिससे लिखता हूँ।

रो लिया जो जुदाई में, मिटा दिया सब ,
खुश हुआ हूँ तो तुझे फिरसे लिखता हूँ ।

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