बाहों का आसरा लेकर जवां हो रहा हूँ।
लबों के लिपट जाने से धुआं हो रहा हूँ।
कहते हैं मेरा नजरिया बदल सा गया है,
नया हो रहा हूँ लेकिन कहाँ हो रहा हूँ।
किसी के आने से खुशनुमा हो चला है मौसम,
कभी मेह कभी धुंध तो कभी फिज़ां हो रहा हूँ।
मेरे पोर-पोर में महकता है तेरा अहसास,
मुझमें कहाँ नहीं है तू, सोचकर हैरां हो रहा हूँ।
बदस्तूर तेरा ख्याल मेरी नींद पर काबिज़ है,
जगा हूँ पर लगता है तेरी गोद में सो रहा हूँ।
ऐ रात यूँ ना कर ज़रा थम-थम के चल,
बाद अरसा किसी आगोश का मेहमां हो रहा हूँ।
जेब में रखा संदेसा झाँक के गुनगुनाता है,
वो आती होगी, मैं नाहक परेशां हो रहा हूँ।
यकीन मानिए क़त्ल हुआ हूँ उसकी आंखों से,
कैसे कहूं कि क्या हुआ, बस बेजुबाँ हो रहा हूँ।
आ रही है खनकती श्यामल दुपट्टा गिराए,
बेकरार दोनों हैं वो वहाँ, मैं यहाँ हो रहा हूँ।
बस दस्तखत यही कि वो नहीं तो हम भी नहीं,
समझिये उसका लिखा ख़त हूँ, ख़ुद बयां हो रहा हूँ।
लबों के लिपट जाने से धुआं हो रहा हूँ।
कहते हैं मेरा नजरिया बदल सा गया है,
नया हो रहा हूँ लेकिन कहाँ हो रहा हूँ।
किसी के आने से खुशनुमा हो चला है मौसम,
कभी मेह कभी धुंध तो कभी फिज़ां हो रहा हूँ।
मेरे पोर-पोर में महकता है तेरा अहसास,
मुझमें कहाँ नहीं है तू, सोचकर हैरां हो रहा हूँ।
बदस्तूर तेरा ख्याल मेरी नींद पर काबिज़ है,
जगा हूँ पर लगता है तेरी गोद में सो रहा हूँ।
ऐ रात यूँ ना कर ज़रा थम-थम के चल,
बाद अरसा किसी आगोश का मेहमां हो रहा हूँ।
जेब में रखा संदेसा झाँक के गुनगुनाता है,
वो आती होगी, मैं नाहक परेशां हो रहा हूँ।
यकीन मानिए क़त्ल हुआ हूँ उसकी आंखों से,
कैसे कहूं कि क्या हुआ, बस बेजुबाँ हो रहा हूँ।
आ रही है खनकती श्यामल दुपट्टा गिराए,
बेकरार दोनों हैं वो वहाँ, मैं यहाँ हो रहा हूँ।
बस दस्तखत यही कि वो नहीं तो हम भी नहीं,
समझिये उसका लिखा ख़त हूँ, ख़ुद बयां हो रहा हूँ।
बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
आपकी सभी कवितायें पढ़ी .. आपने बहुत अच्छा लिखा है ... आपके पास भाषा है . आसमान बड़ा कीजिये ऊंचाईयां बहुत हैं .. मेरी शुभकामनाएं !
ReplyDeletewow Stunning flow of thoughs robin !! Espically:
ReplyDeleteऐ रात यूँ ना कर ज़रा थम-थम के चल,
बाद अरसा किसी आगोश का मेहमां हो रहा हूँ।