अकेले बसर जो की ज़िन्दगी तो बेवफाई जानिये |
नाज़ न उठाये किसी नाज़नीं के तो हरजाई जानिये |
वक्त हो शाम का, बैठा हो रहबर पहलू में ,
फिर चाँद के अफसानों को आशनाई जानिये|
बिखरा हो शबाब आस-पास, उँगलियों में जाम हो
निकल आना उठकर महफिल की रुसवाई जानिये|
दोस्त बस दोस्त रहे मुहब्बत का मसीहा न हो,
गर करे बात-बात पे तारीफ़ महबूब का शैदाई जानिये|
तरन्नुम में वो कातिल बाहें गले में डाले हो 'रोबिन' ,
चिरियों की चहचाहट को बस बजती शहनाई जानिये |
I am an agent of chaos and a perplexed freak !! लेकिन चंद लोग मेरे आस-पास ऐसे हैं जो मेरे लिए न केवल प्रेरणा हैं किन्तु उम्मीद की किरनें भी हैं !! बस उन्हीं को समर्पित....
Friday, February 27, 2009
कुछ और
ये नज़र-अंदाजी की अदा कुछ और होती |
गर तेरी दिलचस्पी मुझमें थोडी और होती |
तेरी चितवन उफ़! क्या उलझन भरी है,
यूँ उलझते ना जो निगाह कुछ और होती |
सवाल यारों के, जनाब कहाँ तक पहुँची बातें,
मुस्कुरा के क्यूँ टालते जो बात कुछ और होती |
कलाकार है,उसकी कलाकारी के हम कायल हैं,
थोड़ा रंग हमारा लेती तो कला कुछ और होती |
कैसे भुलाएं तुझे, भले भूलने को मजबूर हों,
तू बेवफा होती तब वजह कुछ और होती |
'रोबिन' नसीब है किसी शैदाई की वो महज़बीं,
पल भर मेरी होती,चाहे किस्मत कुछ और होती |
गर तेरी दिलचस्पी मुझमें थोडी और होती |
तेरी चितवन उफ़! क्या उलझन भरी है,
यूँ उलझते ना जो निगाह कुछ और होती |
सवाल यारों के, जनाब कहाँ तक पहुँची बातें,
मुस्कुरा के क्यूँ टालते जो बात कुछ और होती |
कलाकार है,उसकी कलाकारी के हम कायल हैं,
थोड़ा रंग हमारा लेती तो कला कुछ और होती |
कैसे भुलाएं तुझे, भले भूलने को मजबूर हों,
तू बेवफा होती तब वजह कुछ और होती |
'रोबिन' नसीब है किसी शैदाई की वो महज़बीं,
पल भर मेरी होती,चाहे किस्मत कुछ और होती |
तेरी छुअन का असर शेष है हथेली पर |
लाख दीवाने भले तेरे, है तू अकेली पर |
जान-लेवा है तेरी आदत,मुंह फेर लेने की,
निकले ज़नाजा जब,खडी रहना हवेली पर|
झेलना दुशवार हो चले गर दुनिया के ताने,
कोसना हमें, इल्जाम डाल देना सहेली पर|
उम्र ढलते-ढलते हम बदल जाएँ गिला नही 'रोबिन',
रब करे वो दुल्हन सी रहे, सदा नई-नवेली पर |
लाख दीवाने भले तेरे, है तू अकेली पर |
जान-लेवा है तेरी आदत,मुंह फेर लेने की,
निकले ज़नाजा जब,खडी रहना हवेली पर|
झेलना दुशवार हो चले गर दुनिया के ताने,
कोसना हमें, इल्जाम डाल देना सहेली पर|
उम्र ढलते-ढलते हम बदल जाएँ गिला नही 'रोबिन',
रब करे वो दुल्हन सी रहे, सदा नई-नवेली पर |
Wednesday, February 11, 2009
कुछ और बातें

जिंदगी फलसफों पे गुजारी नही जाती !
आबो-हवा बदलने से बीमारी नही जाती !!
शबनम सी खो जाती है बीती यादें ,
वो पहले प्यार की खुमारी नही जाती !
मानता हूँ कितना झूठ है यहाँ रिश्तों का सच,
कुछ कड़ियाँ फ़िर भी बचती है,सारी नही जाती !
आदत है ठुकराए जाने की हम दरख्तों को,
पर बहार में जवाँ होने की बेकरारी नही जाती !
जहाँ भर की जिल्लत से डरे वो आशिक नही,
बाज़ी दिल की जीती जाती है ,हारी नही जाती !
अपने ही निगेह्बानों को भुला देते है लोग 'रोबिन',
बस ख़ास दौड़ता है यहाँ ,आम सवारी नही जाती !
आबो-हवा बदलने से बीमारी नही जाती !!
शबनम सी खो जाती है बीती यादें ,
वो पहले प्यार की खुमारी नही जाती !
मानता हूँ कितना झूठ है यहाँ रिश्तों का सच,
कुछ कड़ियाँ फ़िर भी बचती है,सारी नही जाती !
आदत है ठुकराए जाने की हम दरख्तों को,
पर बहार में जवाँ होने की बेकरारी नही जाती !
जहाँ भर की जिल्लत से डरे वो आशिक नही,
बाज़ी दिल की जीती जाती है ,हारी नही जाती !
अपने ही निगेह्बानों को भुला देते है लोग 'रोबिन',
बस ख़ास दौड़ता है यहाँ ,आम सवारी नही जाती !
Tuesday, February 10, 2009
रीतिकाल के प्रेम भरे पद-छंद पढा रहे ,
थे गुरूजी B.A. की क्लास में |
राधा तन रंग भरे श्याम-नैनों में आकंठ ,
डूबी मगन रहे प्रेम-धुन रंग-रास में |
सुजान-प्रेमी घनानंद से ये पद अनूठे,
लिखते वही रम जो जाते प्रेम उजास में |
करके ख़त्म लेक्चर प्रसन्न गुरूजी निकले,
देखे एक छोरा-छोरी बैठे पास-पास में |
गुरूजी को देख अचम्भे में , छोरा बोला,
सर समझी नहीं ये कुछ क्लास में |
इसीलिए अब प्रेम भाव समझा रहा हूँ,
तसल्ली से बैठकर इस घास में ||
थे गुरूजी B.A. की क्लास में |
राधा तन रंग भरे श्याम-नैनों में आकंठ ,
डूबी मगन रहे प्रेम-धुन रंग-रास में |
सुजान-प्रेमी घनानंद से ये पद अनूठे,
लिखते वही रम जो जाते प्रेम उजास में |
करके ख़त्म लेक्चर प्रसन्न गुरूजी निकले,
देखे एक छोरा-छोरी बैठे पास-पास में |
गुरूजी को देख अचम्भे में , छोरा बोला,
सर समझी नहीं ये कुछ क्लास में |
इसीलिए अब प्रेम भाव समझा रहा हूँ,
तसल्ली से बैठकर इस घास में ||
Monday, February 9, 2009
मेरे अशआर
1. नज़र आती है तू हरसू सच कहता हूँ,
तड़प उठती है आरजू सच कहता हूँ !
किसी से अब भूले से भी बात नहीं होती,
होती है बस तेरी गुफ्तगू सच कहता हूँ !!
2. कारगुजारियां जनाब की मशहूर हैं आलम-इ-इश्क में भले मगर,
कोई अदा हम पर मर नहीं सकती, मैं आशिक हो नहीं सकता ||
तड़प उठती है आरजू सच कहता हूँ !
किसी से अब भूले से भी बात नहीं होती,
होती है बस तेरी गुफ्तगू सच कहता हूँ !!
2. कारगुजारियां जनाब की मशहूर हैं आलम-इ-इश्क में भले मगर,
कोई अदा हम पर मर नहीं सकती, मैं आशिक हो नहीं सकता ||
दिनचर्या (संकलित) by- deepti
सुन्दर उँगलियों वाली
एक लड़की
बुहारती है एकांत को
लगा देती है ढेर
एक कोने में
धोती है फुरसतों को
सुखाती है डोरियों पर
दो सलाइयों पर
बुनती है व्यस्तता
एक के दो
दो के चार
करीने से सजा रखती है
परम्पराएं,
मांज कर
रख देती है
इच्छाओं को
कुकर में
और बंद कर देती है
ढक्कन
पूरे प्रेशर के साथ
एक लड़की
बुहारती है एकांत को
लगा देती है ढेर
एक कोने में
धोती है फुरसतों को
सुखाती है डोरियों पर
दो सलाइयों पर
बुनती है व्यस्तता
एक के दो
दो के चार
करीने से सजा रखती है
परम्पराएं,
मांज कर
रख देती है
इच्छाओं को
कुकर में
और बंद कर देती है
ढक्कन
पूरे प्रेशर के साथ
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